Thursday, October 16, 2025

IGNOU Solved Assignment / BHIC 112 Hindi / July 2025 and January 2026 Sessions


Bachelor's of Arts (History)

History Honours (BAHIH) & F.Y.U.P. Major (BAFHI)

BHIC 112

IGNOU Solved Assignment (July 2025 & Jan 2026 Session)

भारत का इतिहास-VII (c. 1605-1750)


सत्रीय कार्य - I


प्रश्न 1: सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी के दौरान दक्षिण भारत में नायक राजनीति के उदय पर चर्चा कीजिए।

उत्तर:

सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में दक्षिण भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ, जो विजयनगर साम्राज्य के पतन और नायक राज्यों (Nayaka Polity) के उदय से चिह्नित है। 'नायक' मूल रूप से विजयनगर साम्राज्य के अधीन सैन्य गवर्नर या सरदार थे, जिन्हें साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों (नायकतनों) का प्रशासन करने का अधिकार दिया गया था। वे राजा को सैन्य सहायता प्रदान करते थे और अपने क्षेत्र से राजस्व वसूलते थे।

उदय के कारण:

1. विजयनगर साम्राज्य का पतन: 1565 में तालिकोटा के युद्ध में विजयनगर साम्राज्य की विनाशकारी हार ने केंद्रीय सत्ता को अत्यधिक कमजोर कर दिया। इस शक्ति शून्य का लाभ उठाकर, प्रांतीय नायकों ने धीरे-धीरे अपनी स्वतंत्रता का दावा करना शुरू कर दिया। वे पहले नाममात्र के लिए विजयनगर के शासकों के प्रति निष्ठा रखते थे, लेकिन व्यावहारिक रूप से वे स्वतंत्र शासक बन गए।

2. अमरम प्रणाली: विजयनगर की प्रशासनिक व्यवस्था में अमरम प्रणाली का महत्वपूर्ण स्थान था। इस प्रणाली के तहत, नायकों को सैन्य सेवा के बदले में भूमि (अमरम) दी जाती थी। इस भूमि से प्राप्त राजस्व का उपयोग उन्हें अपनी सेना के रखरखाव के लिए करना होता था। समय के साथ, इन नायकों ने इन क्षेत्रों में अपनी शक्ति को मजबूत कर लिया और यह पद वंशानुगत हो गया, जिससे उनकी स्वायत्तता और बढ़ गई।

प्रमुख नायक राज्य और उनकी विशेषताएँ:

दक्षिण भारत में कई शक्तिशाली नायक राज्यों का उदय हुआ, जिनमें मदुरै, तंजौर (तंजावुर), और गिंगी (सेंजी) प्रमुख थे।

मदुरै के नायक: ये सबसे प्रसिद्ध नायकों में से थे। तिरुमल नायक (1623-1659) इस वंश के सबसे शक्तिशाली शासक थे, जिन्होंने मदुरै को अपनी राजधानी बनाया और कला एवं वास्तुकला को अत्यधिक संरक्षण दिया। उनके शासनकाल में मदुरै का मीनाक्षी मंदिर भव्यता के शिखर पर पहुंचा। उन्होंने खुद को विजयनगर के नियंत्रण से पूरी तरह स्वतंत्र घोषित कर दिया।

तंजौर के नायक: तंजौर के नायकों ने भी कला और साहित्य को बहुत बढ़ावा दिया। उन्होंने तेलुगु साहित्य को विशेष संरक्षण दिया और कई मंदिरों और सार्वजनिक कार्यों का निर्माण कराया। उनकी राजधानी तंजौर शिक्षा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गई।

गिंगी के नायक: गिंगी के नायकों ने उत्तरी तमिलनाडु के क्षेत्रों पर शासन किया। उनका किला, जिसे "पूर्व का ट्रॉय" कहा जाता था, अपनी अभेद्यता के लिए प्रसिद्ध था। उन्होंने भी स्थानीय स्वायत्तता का प्रयोग किया और एक मजबूत सैन्य शक्ति बनाए रखी।

नायक राजनीति की प्रकृति:

नायक राजनीति मूल रूप से सैन्य-सामंती प्रकृति की थी। शासक अपनी शक्ति और वैधता के लिए अपनी सेना पर बहुत अधिक निर्भर थे। उन्होंने विजयनगर की प्रशासनिक और सांस्कृतिक परंपराओं को जारी रखा, लेकिन साथ ही स्थानीय तत्वों को भी शामिल किया। उन्होंने दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली को संरक्षण दिया और बड़े-बड़े गोपुरमों और मंडपों का निर्माण कराया।

निष्कर्षतः, सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में नायक राजनीति का उदय विजयनगर साम्राज्य के विघटन का सीधा परिणाम था। इन राज्यों ने दक्षिण भारत में राजनीतिक अस्थिरता के दौर में एक महत्वपूर्ण संक्रमणकालीन भूमिका निभाई और इस क्षेत्र की सांस्कृतिक एवं कलात्मक विरासत को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।


प्रश्न 2: ज़ब्त प्रणाली पर एक टिप्पणी लिखिए।

उत्तर:

ज़ब्त प्रणाली (Zabt System) मुगल काल के दौरान, विशेष रूप से सम्राट अकबर के शासनकाल में स्थापित की गई भू-राजस्व निर्धारण की एक मानकीकृत और व्यवस्थित पद्धति थी। यह प्रणाली शेरशाह सूरी द्वारा शुरू किए गए सुधारों पर आधारित थी, लेकिन इसे अकबर के राजस्व मंत्री, राजा टोडरमल ने वैज्ञानिक और विस्तृत रूप देकर अंतिम रूप दिया। इसे 'टोडरमल का बंदोबस्त' भी कहा जाता है।

प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ:

1. भूमि की पैमाइश (Paimaish): इस प्रणाली का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम भूमि का सटीक सर्वेक्षण और माप था। भूमि को मापने के लिए लोहे के छल्लों से जुड़ी बांस की छड़ी, जिसे 'तनब' कहा जाता था, का उपयोग किया गया। इससे माप में सटीकता सुनिश्चित हुई, जो पहले रस्सी के उपयोग से संभव नहीं थी (रस्सी मौसम के अनुसार सिकुड़ती या फैलती थी)

2. भूमि का वर्गीकरण: मापी गई भूमि को उसकी उर्वरता और खेती की निरंतरता के आधार पर चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया था:

पोलज: सबसे उपजाऊ भूमि जिस पर हर साल नियमित रूप से खेती होती थी।

परौती: वह भूमि जिसे अपनी उर्वरता वापस पाने के लिए एक या दो साल के लिए खाली छोड़ दिया जाता था।

चाचर: वह भूमि जिसे तीन से चार साल के लिए खाली छोड़ दिया जाता था।

बंजर: वह भूमि जिस पर पांच या अधिक वर्षों से खेती नहीं हुई हो।

3. राजस्व का निर्धारण (दहसाला प्रणाली): राजस्व निर्धारण का आधार 'दहसाला प्रणाली' थी, जिसे 1580 में लागू किया गया था। इसके तहत, प्रत्येक क्षेत्र में विभिन्न फसलों के लिए पिछले दस वर्षों (1570-1580) के औसत उत्पादन और औसत कीमतों का पता लगाया गया। इस औसत उपज का एक-तिहाई (1/3) हिस्सा भू-राजस्व के रूप में निर्धारित किया गया। यह निर्धारण नकद में किया जाता था, जिसे 'दस्तूर' कहा जाता था। इससे किसानों और राज्य दोनों के लिए राजस्व की राशि पहले से तय हो जाती थी, जिससे अनिश्चितता समाप्त हो गई।

क्रियान्वयन और प्रभाव:

ज़ब्त प्रणाली को लागू करने के लिए साम्राज्य को सूबों, सरकारों, परगनों और महलों में विभाजित किया गया था। करोरी नामक अधिकारियों को राजस्व एकत्र करने और रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए नियुक्त किया गया था। यह प्रणाली मुख्य रूप से साम्राज्य के मध्यवर्ती और स्थापित प्रांतों जैसे दिल्ली, आगरा, अवध, लाहौर और गुजरात में सफलतापूर्वक लागू की गई।

गुण और दोष:

गुण: इस प्रणाली ने राजस्व संग्रह में मनमानी को कम किया और राज्य के लिए एक स्थिर और नियमित आय सुनिश्चित की। किसानों को भी यह पता होता था कि उन्हें कितना कर देना है, जिससे वे स्थानीय अधिकारियों के शोषण से बचते थे।

दोष: यह प्रणाली काफी जटिल थी और इसे लागू करने के लिए एक कुशल और ईमानदार प्रशासनिक तंत्र की आवश्यकता थी। दूरदराज के या अशांत क्षेत्रों में इसे लागू करना मुश्किल था। इसके अलावा, निश्चित नकद भुगतान के कारण फसल खराब होने की स्थिति में किसानों पर भारी बोझ पड़ सकता था।

निष्कर्षतः, ज़ब्त प्रणाली मुगल प्रशासन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, जिसने भू-राजस्व व्यवस्था में एकरूपता और निष्पक्षता लाने का प्रयास किया। यह प्रणाली भारतीय इतिहास में भू-राजस्व प्रशासन का एक मील का पत्थर साबित हुई और इसने भविष्य की प्रणालियों के लिए एक आधार प्रदान किया।


सत्रीय कार्य - II


प्रश्न 3: भारत में मुगल आगमन की पूर्व संध्या पर फारसी भाषा और साहित्य के विकास पर चर्चा कीजिए।

उत्तर:

भारत में मुगलों के आगमन से पहले, विशेष रूप से दिल्ली सल्तनत (1206-1526) के दौरान, फारसी भाषा और साहित्य ने अपनी जड़ें गहरी जमा ली थीं। फारसी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त था और यह प्रशासन, न्याय और अभिजात वर्ग की संवाद भाषा थी। इस काल में भारत, ईरान और मध्य एशिया के विद्वानों और कवियों के लिए एक प्रमुख केंद्र बन गया था।

इस युग के सबसे महान कवि और विद्वान अमीर खुसरो (1253-1325) थे, जिन्हें 'तूती--हिन्द' (भारत का तोता) कहा जाता है। उन्होंने फारसी कविता में भारतीय विषयों, उपमाओं और मुहावरों का समावेश करके एक नई शैली का विकास किया, जिसे 'सबक--हिन्दी' (भारतीय शैली) के नाम से जाना जाता है। उनकी गजलें, मसनवी और ऐतिहासिक कृतियाँ आज भी प्रसिद्ध हैं।

फारसी का उपयोग केवल कविता तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इतिहास-लेखन (तवारीख) में भी इसका व्यापक रूप से प्रयोग किया गया। जियाउद्दीन बरनी द्वारा रचित 'तारीख--फिरोजशाही' और मिन्हाज-उस-सिराज की 'तबकात--नासिरी' सल्तनत काल के इतिहास को समझने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

सूफी संतों ने भी अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए फारसी का उपयोग किया, जिससे यह भाषा आम लोगों तक भी पहुँची। इस प्रकार, जब बाबर ने 1526 में भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी, तो उसे एक ऐसी भूमि विरासत में मिली जहाँ फारसी भाषा और साहित्य पहले से ही फल-फूल रहा था। मुगलों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया और इसे नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया।


प्रश्न 4: अकबर के शासनकाल के दौरान मुगल साम्राज्य के क्षेत्रीय विस्तार पर एक नोट लिखिए।

उत्तर:

अकबर (1556-1605) के शासनकाल को मुगल साम्राज्य के सुदृढ़ीकरण और अभूतपूर्व क्षेत्रीय विस्तार के लिए जाना जाता है। उसने एक आक्रामक विस्तारवादी नीति अपनाई, जिसमें सैन्य विजय, कूटनीति और वैवाहिक गठबंधनों का चतुराई से उपयोग किया गया।

प्रमुख विजय अभियान:

1. उत्तरी भारत: 1556 में पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू को हराकर अकबर ने दिल्ली और आगरा पर अपना नियंत्रण मजबूत किया। इसके बाद, उसने मालवा, गोंडवाना (रानी दुर्गावती के खिलाफ), और चुनार के किलों पर विजय प्राप्त की।

2. राजपूताना: अकबर ने राजपूताना के प्रति एक दोहरी नीति अपनाई। उसने आमेर, बीकानेर और जैसलमेर जैसे कई राजपूत राज्यों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए। जिन राज्यों ने अधीनता स्वीकार नहीं की, जैसे मेवाड़, उनके खिलाफ सैन्य अभियान चलाए गए। 1568 में चित्तौड़ और 1569 में रणथंभौर पर विजय उसकी प्रमुख सफलताएँ थीं।

3. पश्चिम और पूर्व: 1573 में गुजरात की विजय एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी क्योंकि इससे मुगल साम्राज्य को समुद्री व्यापार के लिए बंदरगाह मिले। इसके बाद, उसने पूर्व में बिहार और बंगाल के समृद्ध प्रांतों को जीता, जिससे साम्राज्य की आय में भारी वृद्धि हुई।

4. उत्तर-पश्चिम सीमांत: साम्राज्य को सुरक्षित करने के लिए, अकबर ने उत्तर-पश्चिम में काबुल (1585), कश्मीर (1586), सिंध (1591) और बलूचिस्तान (1595) पर नियंत्रण स्थापित किया। 1595 में कंधार पर शांतिपूर्ण विजय ने मुगलों और फारसियों के बीच एक सुरक्षित सीमा बनाई।

5. दक्कन: अपने शासनकाल के अंत में, अकबर ने दक्कन की ओर ध्यान दिया और खानदेश पर कब्जा कर लिया तथा अहमदनगर और बीजापुर से कुछ क्षेत्रों को छीन लिया।

अकबर के शासनकाल के अंत तक, मुगल साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी तक और पश्चिम में कंधार से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक फैल चुका था।


प्रश्न 5: मध्यकालीन दक्कन के गांवों की मुख्य विशेषताएं क्या थीं? चर्चा कीजिए।

उत्तर:

मध्यकालीन दक्कन के गाँव काफी हद तक आत्मनिर्भर, सामाजिक और आर्थिक इकाइयाँ थीं, जिनकी अपनी विशिष्ट प्रशासनिक संरचना थी। इनकी मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं:

1. ग्राम प्रशासन: प्रत्येक गाँव का प्रशासन वंशानुगत अधिकारियों द्वारा चलाया जाता था। इनमें पाटिल (मुखिया) और कुलकर्णी (लेखाकार) सबसे महत्वपूर्ण थे। पाटिल गाँव में कानून-व्यवस्था बनाए रखने और भू-राजस्व एकत्र करने के लिए जिम्मेदार था, जबकि कुलकर्णी भूमि और राजस्व का रिकॉर्ड रखता था। इन अधिकारियों को उनकी सेवाओं के बदले में कर-मुक्त भूमि दी जाती थी, जिसे 'वतन' कहा जाता था।

2. बलूता प्रणाली: दक्कन के गाँवों की अर्थव्यवस्था की एक अनूठी विशेषता बलूता प्रणाली थी। यह एक प्रकार की वस्तु-विनिमय प्रणाली थी जिसमें गाँव के कारीगर और सेवा प्रदाता (जैसे बढ़ई, लोहार, कुम्हार, नाई, धोबी), जिन्हें 'बलूतेदार' कहा जाता था, किसानों को अपनी सेवाएँ प्रदान करते थे। इसके बदले में, फसल कटाई के समय उन्हें किसानों की उपज का एक निश्चित हिस्सा मिलता था। इस प्रणाली ने गाँव की आत्मनिर्भरता को मजबूत किया और समुदाय के भीतर एक एकीकृत आर्थिक संबंध बनाया।

3. सामाजिक संरचना: गाँव का समाज जाति-आधारित था और विभिन्न जातियों के लोग अपने पारंपरिक व्यवसायों का पालन करते थे। ग्राम समुदाय सामूहिक रूप से तालाबों, चरागाहों और जंगलों जैसे सामान्य संसाधनों का प्रबंधन करता था। ग्राम पंचायतें स्थानीय विवादों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं।

संक्षेप में, दक्कन के गाँव एक सुव्यवस्थित वंशानुगत अधिकारी तंत्र और बलूता प्रणाली पर आधारित आत्मनिर्भर इकाइयाँ थीं, जो उन्हें एक विशिष्ट सामाजिक और आर्थिक चरित्र प्रदान करती थीं।


सत्रीय कार्य - III


प्रश्न 6: अबुल फ़ज़्ल

उत्तर:

अबुल फ़ज़्ल सम्राट अकबर के दरबार के एक प्रमुख विद्वान, इतिहासकार और सलाहकार थे। वह अकबर के 'नवरत्नों' में से एक थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति 'अकबरनामा' है, जो अकबर के शासनकाल का एक विस्तृत और आधिकारिक इतिहास है। इसका तीसरा भाग, जिसे 'आइन--अकबरी' कहा जाता है, मुगल साम्राज्य के प्रशासन, समाज और अर्थव्यवस्था का एक अनमोल दस्तावेज़ है। अबुल फ़ज़्ल अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति 'सुलह--कुल' (सार्वभौमिक शांति) के प्रबल समर्थक थे। 1602 में शहजादा सलीम (जहाँगीर) के इशारे पर उनकी हत्या कर दी गई थी।


प्रश्न 7: असम बुरूंजी

उत्तर:

बुरूंजी, असम के अहोम साम्राज्य के ऐतिहासिक वृत्तांत या इतिवृत्त हैं। ये गद्य में लिखे गए हैं और अहोमों के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास का विस्तृत विवरण प्रदान करते हैं। प्रारंभ में ये अहोम भाषा में लिखे गए थे, लेकिन बाद में इनका असमिया भाषा में भी लेखन हुआ। बुरूंजी में राजाओं की वंशावली, युद्धों, प्रशासनिक निर्णयों और महत्वपूर्ण घटनाओं का कालानुक्रमिक वर्णन मिलता है। ये मध्यकालीन पूर्वोत्तर भारत के इतिहास के अध्ययन के लिए सबसे महत्वपूर्ण और अद्वितीय स्वदेशी स्रोत माने जाते हैं, जो इस क्षेत्र की समृद्ध इतिहास-लेखन परंपरा को दर्शाते हैं।


प्रश्न 8: दूसरा अफ़गान साम्राज्य

उत्तर:

"दूसरा अफ़गान साम्राज्य" का संदर्भ सूर साम्राज्य (1540-1555) से है, जिसकी स्थापना शेरशाह सूरी ने की थी। 1540 में कन्नौज (बिलग्राम) के युद्ध में मुगल सम्राट हुमायूँ को हराने के बाद शेरशाह ने दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर लिया। यद्यपि यह साम्राज्य केवल 15 वर्षों तक चला, लेकिन यह अपने प्रशासनिक और राजस्व सुधारों के लिए विख्यात है। शेरशाह ने एक मजबूत केंद्रीयकृत शासन, मुद्रा प्रणाली (चाँदी का 'रुपया'), और ग्रैंड ट्रंक रोड जैसी सड़कों का निर्माण कराया। 1555 में हुमायूँ ने पुनः दिल्ली पर अधिकार कर इस साम्राज्य का अंत कर दिया।


प्रश्न 9: खंडीय राज्य सिद्धांत

उत्तर:

खंडीय राज्य (Segmentary State) सिद्धांत एक राजनीतिक मॉडल है जिसे इतिहासकार बर्टन स्टाइन ने मध्यकालीन दक्षिण भारतीय राज्यों, विशेष रूप से चोल साम्राज्य, की प्रकृति का वर्णन करने के लिए प्रतिपादित किया था। इस सिद्धांत के अनुसार, राजा का वास्तविक राजनीतिक नियंत्रण केवल राज्य के केंद्रीय क्षेत्र पर होता था। परिधीय क्षेत्रों या 'खंडों' (segments) में, स्थानीय सरदार और सभाएँ काफी स्वायत्त थीं। ये खंड राजा की अनुष्ठानिक संप्रभुता को तो स्वीकार करते थे, लेकिन अपने आंतरिक मामलों में स्वतंत्र रूप से कार्य करते थे। यह सिद्धांत एक अत्यधिक केंद्रीकृत, नौकरशाही साम्राज्य के विचार को चुनौती देता है।


प्रश्न 10: ज़मींदारी अधिकार

उत्तर:

मुगल काल में ज़मींदारी अधिकार किसी व्यक्ति या परिवार के भूमि पर वंशानुगत दावों को संदर्भित करते थे। ज़मींदार भूमि का मालिक नहीं होता था, बल्कि उसे अपने क्षेत्र के किसानों से भू-राजस्व वसूलने का अधिकार प्राप्त था। इस सेवा के बदले में, उसे एकत्रित राजस्व का एक हिस्सा (लगभग 10%, जिसे 'नानकार' कहा जाता था) मिलता था या उसे कर-मुक्त भूमि (खुद्काश्त) पर खेती करने का अधिकार होता था। ये अधिकार वंशानुगत होते थे और इन्हें खरीदा या बेचा भी जा सकता था। ज़मींदार राज्य और किसानों के बीच एक महत्वपूर्ण मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे।

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