Thursday, October 16, 2025

IGNOU Solved Assignment / BHIC 104 Hindi / July 2025 and January 2026 Sessions

Bachelor's of Arts (History)

History Honours (BAHIH) & F.Y.U.P. Major (BAFHI)

BHIC 104

IGNOU Solved Assignment (July 2025 & Jan 2026 Session)

मध्यकालीन विश्व की सामजिक संरचना और सांस्कृतिक पैटर्न 


सत्रीय कार्य-I


1)   रोम की राजनैतिक संरचना की व्याख्या कीजिए

उत्तर:  रोम की राजनैतिक संरचना (Roman Political Structure)

रोम की राजनैतिक संरचना विश्व इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है, क्योंकि इसने न केवल अपने समय में एक सशक्त शासन प्रणाली स्थापित की, बल्कि आगे चलकर यूरोप और आधुनिक लोकतंत्रों को भी गहराई से प्रभावित किया। रोम की राजनीति का विकास एक लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया थी, जिसे तीन प्रमुख चरणों में बाँटा जा सकता है — राजतंत्र (Monarchy), गणराज्य (Republic) और साम्राज्य (Empire)

१. राजतंत्र काल (753 ई.पू. – 509 ई.पू.)

रोम की स्थापना लगभग 753 ई.पू. में रोमुलस नामक व्यक्ति ने की थी। प्रारंभ में रोम पर राजाओं का शासन था। कुल मिलाकर सात राजा हुए, जिनमें प्रसिद्ध नाम रोमुलस, नूमा पोम्पिलियस और टार्क्विनियस सुपरबस हैं। राजा के पास सर्वोच्च अधिकार होता था — वही कानून बनाता, युद्ध की घोषणा करता और न्याय करता था।

राजा की सहायता के लिए दो प्रमुख संस्थाएँ थीं:

  1. सीनेट (Senate) – यह बुज़ुर्गों की एक परिषद थी, जिसमें लगभग 300 सदस्य होते थे। यह राजा को परामर्श देती थी और प्रशासनिक स्थिरता बनाए रखती थी।
  2. जनसभा (Comitia Curia) – यह सामान्य नागरिकों की सभा थी, जो राजा की नियुक्ति को स्वीकृति देती थी और कुछ प्रशासनिक निर्णयों में भाग लेती थी।

राजतंत्र काल में धीरे-धीरे अभिजात वर्ग (Patricians) और सामान्य जनता (Plebeians) के बीच भेद बढ़ने लगा। अंतिम राजा टार्क्विनियस सुपरबस की निरंकुशता के कारण जनता ने 509 ई.पू. में राजतंत्र को समाप्त कर दिया और गणराज्य की स्थापना की।

२. गणराज्य काल (509 ई.पू. – 27 ई.पू.)

गणराज्य काल रोम के राजनीतिक विकास का स्वर्ण युग था। अब राजा के स्थान पर दो कौंसल (Consuls) चुने जाने लगे, जिनका कार्यकाल केवल एक वर्ष का होता था। ये दोनों समान अधिकार रखते थे ताकि कोई भी व्यक्ति निरंकुश न बन सके।

गणराज्य की प्रमुख संस्थाएँ थीं:

  1. (क) सीनेट (Senate) – यह रोम की सबसे शक्तिशाली संस्था थी। इसके सदस्य प्रायः कुलीन वर्ग (Patricians) से होते थे। सीनेट विदेश नीति, वित्त, प्रशासन और युद्ध संबंधी निर्णय लेती थी।
  2. (ख) कौंसल (Consuls) – दो कौंसल राज्य के प्रमुख शासक होते थे, जो सेना का नेतृत्व करते और प्रशासन संभालते थे।
  3. (ग) जनसभाएँ (Popular Assemblies) – नागरिकों की विभिन्न सभाएँ होती थीं, जैसे Comitia Centuriata और Comitia Tributa। इनमें जनता कानून पारित करती और अधिकारियों का चुनाव करती थी।
  4. (घ) न्यायाधीश और अधिकारी (Magistrates) – ये विभिन्न प्रशासनिक और न्यायिक कार्यों के लिए उत्तरदायी थे।

गणराज्य काल में धीरे-धीरे प्लेबियनों को भी अधिकार मिले, जैसे — ट्रिब्यून (Tribune) पद, जिसके द्वारा वे अपने हितों की रक्षा कर सकते थे। इस काल में रोम ने अनेक विजय प्राप्त कर भूमध्य सागर के बड़े भाग पर अधिकार कर लिया।

३. साम्राज्य काल (27 ई.पू. – 476 ई.)

लगातार युद्धों और राजनीतिक संघर्षों के कारण गणराज्य की शक्ति कमजोर पड़ने लगी। अंततः जूलियस सीज़र के उत्तराधिकारी ऑगस्टस ने 27 ई.पू. में सत्ता ग्रहण कर साम्राज्य की नींव रखी।

साम्राज्य काल में शक्ति का केंद्रीकरण हुआ —

  1. सम्राट (Emperor) सर्वोच्च शासक बना, जिसके हाथ में सेना, प्रशासन, न्याय और धर्म सभी का नियंत्रण था।
  2. सीनेट अब केवल सलाहकार संस्था रह गई।
  3. स्थानीय प्रशासन प्रांतों में नियुक्त गवर्नरों द्वारा चलाया जाता था।

ऑगस्टस के शासन में रोम में शांति और समृद्धि आई, जिसे “पैक्स रोमाना” कहा जाता है।

निष्कर्ष

रोम की राजनैतिक संरचना ने समय के साथ निरंतर परिवर्तन और विकास का परिचय दिया। राजतंत्र से गणराज्य और फिर साम्राज्य तक की यह यात्रा मानव सभ्यता के राजनीतिक विकास की एक उल्लेखनीय मिसाल है। रोम की सीनेट व्यवस्था, कानून निर्माण की परंपरा और नागरिक अधिकारों की अवधारणा ने आधुनिक लोकतांत्रिक शासन की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

2)   क्या इस बात से सहमत हैं कि रोमन कला लगभग पूरी तरह से यूनानी कला रूपों को दर्शाती थी?

उत्तर:   रोमन कला के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि रोमनों ने अपनी कला और स्थापत्य के विकास में यूनानी कला से अत्यधिक प्रेरणा ली थी। वस्तुतः रोम की कला का प्रारंभिक स्वरूप ही यूनानी परंपरा पर आधारित था। इसलिए यह कहना बहुत हद तक उचित है कि रोमन कला लगभग पूरी तरह यूनानी कला रूपों को दर्शाती थी, हालांकि रोमनों ने उसमें अपनी व्यावहारिकता, भव्यता और वास्तविक जीवन के चित्रण की विशेषताएँ भी जोड़ीं।

१. यूनानी प्रभाव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

रोमन साम्राज्य के विस्तार के समय यूनान (ग्रीस) पहले से ही सांस्कृतिक रूप से अत्यंत उन्नत था। जब रोमनों ने यूनान पर अधिकार किया, तो उन्होंने यूनानी मूर्तियों, चित्रकला और स्थापत्य की प्रशंसा करते हुए उन्हें अपनाया। यूनानी कलाकारों को रोम लाया गया और उनके कार्यों की प्रतियाँ व्यापक रूप से बनाई गईं। इस तरह यूनानी कला सीधे रोम की संस्कृति में समाहित हो गई।

२. मूर्तिकला (Sculpture) में यूनानी प्रभाव

रोमन मूर्तिकला पर यूनानी प्रभाव सबसे अधिक स्पष्ट दिखाई देता है।

  1. यूनानियों की तरह रोमनों ने भी मानव शरीर की सुंदरता, संतुलन और अनुपात को अपनी मूर्तियों में उकेरा।
  2. यूनानी मूर्तिकार आदर्श रूप (Ideal form) पर ध्यान देते थे, जबकि रोमन कलाकारों ने उसमें वास्तविकता (Realism) का समावेश किया। उदाहरण के लिए, यूनानी देवताओं की मूर्तियाँ जहाँ सौंदर्य का प्रतीक थीं, वहीं रोमन मूर्तियाँ सैनिकों, राजाओं या बुज़ुर्ग नागरिकों के वास्तविक चेहरे और भावों को दर्शाती थीं।
  3. प्रसिद्ध यूनानी कलाकारों जैसे फिडियास और पोलाइक्लिटस के कार्यों की प्रतियाँ रोम में बनाईं गईं।

इस प्रकार, रोमन मूर्तिकला यूनानी आदर्शों पर आधारित होकर भी अधिक यथार्थवादी बन गई।

३. स्थापत्य कला (Architecture) में यूनानी परंपरा

रोमन स्थापत्य का भी आधार यूनानी शैली ही थी। यूनानियों की डोरिक, आयोनिक और कोरिंथियन स्तंभ शैली (Doric, Ionic, Corinthian Orders) को रोमनों ने अपनाया और आगे विकसित किया।

  1. रोमनों ने यूनानी शैली को अपनाकर उसमें गुम्बद (Dome), मेहराब (Arch) और कंक्रीट (Concrete) जैसी तकनीकी विशेषताएँ जोड़ीं।
  2. पैंथियन (Pantheon), कोलोसियम (Colosseum) और एक्वाडक्ट (Aqueducts) जैसे भवन रोमनों की इस नई मिश्रित शैली के उदाहरण हैं — जिनमें यूनानी सौंदर्य और रोमन इंजीनियरिंग का संगम देखा जा सकता है।

४. चित्रकला और सजावट

यूनान की भित्ति चित्रकला (Fresco painting) की परंपरा रोम में भी लोकप्रिय हुई। पोम्पेई और हरकुलेनियम के खंडहरों में पाए गए चित्र यूनानी शैली की ही झलक देते हैं — इनमें प्राकृतिक दृश्य, पौराणिक कथाएँ और मानव आकृतियाँ अत्यंत सुंदरता से उकेरी गई हैं।

५. रोमन योगदान और मौलिकता

यद्यपि रोमन कला यूनानी कला से प्रेरित थी, परंतु रोमनों ने उसे केवल नकल बनाकर नहीं छोड़ा। उन्होंने उसमें व्यावहारिकता, भव्यता और यथार्थ का समावेश किया।

  1. यूनानी कला जहाँ आदर्शवाद (Idealism) की ओर झुकी थी, वहीं रोमन कला यथार्थवाद (Realism) पर आधारित थी।
  2. रोमनों ने कला को केवल सौंदर्य के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रचार और सार्वजनिक उपयोग के लिए भी प्रयोग किया — जैसे विजय द्वार (Triumphal Arches), स्मारक और मूर्तियाँ जो सम्राटों की शक्ति का प्रतीक थीं।

निष्कर्ष

इस प्रकार यह कहना उचित होगा कि रोमन कला की जड़ें पूरी तरह यूनानी कला में निहित थीं। रोमनों ने यूनानी रूप, शैली और तकनीक को अपनाकर उसे अपने व्यावहारिक और यथार्थवादी दृष्टिकोण से समृद्ध किया। इसलिए कहा जा सकता है कि रोमन कला यूनानी कला की प्रतिच्छाया (reflection) थी, लेकिन साथ ही उसने अपनी स्वतंत्र पहचान भी बनाई — जो सौंदर्य और उपयोगिता के अद्भुत संतुलन का उदाहरण है।

 

सत्रीय कार्य-II

 

3) रोमन जगत को 'अधिग्रहण की सभ्यता' क्यों कहा गया था?

उत्तर: रोमन जगत को ‘अधिग्रहण की सभ्यता’ (Civilization of Conquest) कहा जाता है क्योंकि रोम की पूरी उन्नति और संस्कृति का आधार विजय, विस्तार और अधिग्रहण पर टिका हुआ था। रोमनों ने अपने इतिहास की शुरुआत एक छोटे नगर-राज्य के रूप में की थी, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने सैन्य शक्ति और संगठित शासन के बल पर एक विशाल साम्राज्य खड़ा किया जो यूरोप, एशिया और अफ्रीका के बड़े हिस्से तक फैला।

रोमन समाज का मुख्य लक्ष्य नए प्रदेशों पर अधिकार करना और उन्हें रोम की सत्ता के अधीन लाना था। उनके सैनिक अनुशासित और प्रशिक्षित थे, जिनकी वीरता के कारण रोम ने यूनान, मिस्र, स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन तक पर विजय प्राप्त की। इन विजयों से रोम को धन, दास और संसाधन मिले, जिससे उसका आर्थिक और सांस्कृतिक विकास हुआ।

इसके साथ ही रोमनों की संस्कृति ने भी अधिग्रहण का रूप लिया। उन्होंने जिन-जिन देशों को जीता, उनकी कला, भाषा, स्थापत्य और रीति-रिवाजों को अपनाया और उन्हें अपने ढंग से परिवर्तित किया। यूनानी कला और विचारों को अपनाकर उन्होंने एक नई मिश्रित संस्कृति उत्पन्न की।

अतः कहा जा सकता है कि रोमन सभ्यता केवल युद्ध और राजनीति की नहीं, बल्कि सैन्य विजय और सांस्कृतिक आत्मसात की सभ्यता थी। इसी कारण इतिहासकारों ने रोम को ‘अधिग्रहण की सभ्यता’ कहा — क्योंकि उसने तलवार और संस्कृति दोनों के माध्यम से संसार को अपने प्रभाव में ले लिया था।

 

4)   लार्ड और वसाल के मध्य क्या संबंध थे? 

उत्तर: मध्यकालीन यूरोप में शासन व्यवस्था सामंतवाद (Feudalism) पर आधारित थी। इस व्यवस्था में समाज मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित था — लार्ड (Lord) और वसाल (Vassal)। इनके बीच का संबंध भूमि, निष्ठा और पारस्परिक दायित्वों पर टिका होता था।

लार्ड वह सामंत या भूमि का स्वामी होता था जिसके पास विशाल ज़मीनें होती थीं। वह अपनी भूमि का एक भाग किसी वसाल को देता था, जिसे “फीफ (Fief)” कहा जाता था। इस भूमि के बदले वसाल को लार्ड के प्रति निष्ठा की शपथ लेनी पड़ती थी। यह शपथ “होमेज़ (Homage)” और “फीएल्टी (Fealty)” कहलाती थी।

वसाल का कर्तव्य था कि वह अपने लार्ड की हर परिस्थिति में सहायता करे — विशेष रूप से युद्ध के समय सैनिक सेवा प्रदान करे, करों का भुगतान करे, और लार्ड के शत्रुओं से उसकी रक्षा करे। इसके बदले लार्ड वसाल को भूमि, सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करता था।

यह संबंध केवल राजनीतिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक भी था। दोनों एक-दूसरे पर निर्भर थे — लार्ड शासन और सुरक्षा देता था, जबकि वसाल निष्ठा और सेवा के माध्यम से उस व्यवस्था को स्थिर रखता था।

अतः कहा जा सकता है कि लार्ड और वसाल के बीच का संबंध भूमि, निष्ठा और परस्पर कर्तव्य पर आधारित एक पारस्परिक अनुबंध था, जिसने मध्यकालीन यूरोपीय समाज की राजनीतिक और सामाजिक संरचना की नींव रखी।

 

5)  ईसाई धर्म के प्रभुत्व से पहले रोमन जगत के कुछ धार्मिक सम्प्रदायों या पंथों का नाम बताइये और उनके समर्पित दर्शन या विचारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर:   ईसाई धर्म के उदय से पहले रोमन जगत में अनेक धार्मिक सम्प्रदाय (Cults) और पंथ (Sects) प्रचलित थे। ये पंथ यूनानी, मिस्री और ओरिएंटल (पूर्वी) संस्कृतियों से प्रभावित थे। इनका मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि, मृत्यु के बाद जीवन और ईश्वर से व्यक्तिगत संबंध की खोज था।

  1. मिथ्राइज़्म (Mithraism):
  2. यह पर्शिया (ईरान) से आया एक रहस्यवादी पंथ था। इसके देवता मिथ्र को प्रकाश और सत्य का प्रतीक माना जाता था। अनुयायी मानते थे कि मिथ्र मनुष्य को अंधकार और बुराई से मुक्त करते हैं। इसमें दीक्षा (initiation) और गुप्त अनुष्ठानों का विशेष महत्व था। यह सैनिकों में अत्यधिक लोकप्रिय था।
  3. आइसिस पंथ (Cult of Isis):
  4. यह मिस्र की देवी आइसिस की उपासना पर आधारित था। आइसिस को मातृत्व, जादू और पुनर्जन्म की देवी माना जाता था। यह पंथ विशेष रूप से महिलाओं और गरीब वर्ग में लोकप्रिय हुआ क्योंकि यह करुणा, प्रेम और मुक्ति का संदेश देता था।
  5. डायोनिसस या बेकस पंथ (Dionysian/Bacchic Cult):
  6. यह यूनानी देवता डायोनिसस (Bacchus) की पूजा से जुड़ा था, जो आनंद, संगीत और मादकता के देवता माने जाते थे। इस पंथ में उत्सव, नृत्य और धार्मिक उन्माद के माध्यम से आत्मिक मुक्ति की खोज की जाती थी।

इन पंथों में रहस्यवाद, पुनर्जन्म और नैतिक सुधार की भावना प्रमुख थी। इन्हीं विचारों ने आगे चलकर ईसाई धर्म के विकास और उसके आध्यात्मिक स्वरूप को गहराई से प्रभावित किया।


सत्रीय कार्य-III 

 

6)   अब्बासी खलीफा

उत्तर:  अब्बासी खलीफा (750–1258 ई.) इस्लामी इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है। उन्होंने उमय्यदों का अंत कर बगदाद को राजधानी बनाया, जो ज्ञान, कला और विज्ञान का केंद्र बना। अब्बासियों के शासन में ग्रीक, फारसी और भारतीय विद्या का अनुवाद हुआ तथा चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र और दर्शन का विकास हुआ। खलीफा हारून अल-रशीद और अल-मामून के समय “बैतुल हिक्मा” जैसी विद्या संस्थाएँ प्रसिद्ध हुईं। यद्यपि बाद में उनका राजनीतिक नियंत्रण कमजोर हुआ, परंतु सांस्कृतिक और बौद्धिक उन्नति के कारण अब्बासी काल इस्लामी सभ्यता का उज्ज्वल युग कहलाता है।


7)  खारिजी

उत्तर:   खारिजी (ख़वारिज) इस्लाम के प्रारंभिक काल का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और राजनीतिक समूह था, जो चौथे खलीफा हज़रत अली (रज़ि.) के समय उभरा। वे सिफ़्फ़ीन की लड़ाई के बाद मध्यस्थता (तहकीम) के निर्णय से असहमत होकर अली की सेना से अलग हो गए। उनका मानना था कि केवल अल्लाह का निर्णय सर्वोच्च है और जो भी अन्याय करे, वह मुसलमान नहीं रह सकता। खारिजी लोग समानता, सादगी और कठोर धार्मिकता पर बल देते थे, परंतु उनकी चरमपंथी सोच और हिंसक गतिविधियों ने इस्लामी समाज में विभाजन पैदा किया।

 

8)  चीन के साथ अरब व्यापार

उत्तर:   अरबों और चीन के बीच व्यापारिक संबंध प्राचीन काल से स्थापित थे। यह व्यापार मुख्यतः रेशम मार्ग (Silk Route) और समुद्री मार्गों से होता था। अरब व्यापारी चीन से रेशम, चीनी मिट्टी के बर्तन, और कागज लाते थे, जबकि चीन को सोना, चांदी, मसाले, कांच और मोती भेजे जाते थे। तांग वंश के समय यह व्यापार अपने चरम पर पहुँचा। अरबों ने न केवल वस्तुओं का आदान-प्रदान किया, बल्कि उन्होंने चीन में इस्लामी संस्कृति और विज्ञान के प्रभाव को भी पहुँचाया। इस व्यापार ने दोनों सभ्यताओं के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को गहराई से जोड़ा। 


9)  रोमन कला

उत्तर:  रोमन कला यथार्थवाद, भव्यता और व्यावहारिकता का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मुख्यतः यूनानी कला से प्रभावित थी, परंतु रोमनों ने उसमें अपना यथार्थवादी दृष्टिकोण जोड़ा। उनकी मूर्तियाँ और चित्र मानव जीवन के वास्तविक रूप, भाव और व्यक्तित्व को दर्शाते थे। स्थापत्य कला में रोमनों ने गुम्बद, मेहराब और कंक्रीट का प्रयोग कर भव्य इमारतें जैसे कोलोसियम और पैंथियन का निर्माण किया। रोमन कला केवल सौंदर्य के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक शक्ति और साम्राज्यिक गौरव को प्रदर्शित करने का माध्यम भी थी। इसने आगे की यूरोपीय कला पर गहरा प्रभाव छोड़ा।

 

10)  इंका अर्थव्यवस्था  

उत्तर:  इंका साम्राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित थी। लोग सामूहिक रूप से खेती करते थे और भूमि राज्य की संपत्ति मानी जाती थी। मुख्य फसलें मक्का, आलू और क्विनोआ थीं। सिंचाई और पहाड़ी खेतों (टेरेस फार्मिंग) की उन्नत तकनीक से उत्पादन बढ़ाया जाता था। व्यापार वस्तु-विनिमय प्रणाली पर चलता था क्योंकि मुद्रा का प्रयोग नहीं होता था। श्रम और कर ‘मिता’ प्रणाली के तहत दिए जाते थे, जिसमें हर व्यक्ति राज्य के कार्यों में श्रम योगदान देता था। इंका अर्थव्यवस्था केंद्रीकृत और संगठित थी, जो जनकल्याण और सामूहिक समृद्धि पर आधारित थी।

Mulsif Publication

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